बुधवार, 19 जून 2013

ब्रज बांसुरी" की रचनाएँ ....भाव अरपन ..सात ..गज़लें ..सुमन -२ ..काम करेंगे ...डा श्याम गुप्त ...



            ब्रज बांसुरी" की रचनाएँ .......डा श्याम गुप्त ...   
              
                     मेरे शीघ्र प्रकाश्य  ब्रजभाषा काव्य संग्रह ..." ब्रज बांसुरी " ...की ब्रजभाषा में रचनाएँ  गीत, ग़ज़ल, पद, दोहे, घनाक्षरी, सवैया, श्याम -सवैया, पंचक सवैया, छप्पय, कुण्डलियाँ, अगीत, नव गीत आदि  मेरे अन्य ब्लॉग .." हिन्दी हिन्दू हिंदुस्तान " ( http://hindihindoohindustaan.blogspot.com ) पर क्रमिक रूप में प्रकाशित की जायंगी ... .... 
        कृति--- ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा में विभिन्न काव्यविधाओं की रचनाओं का संग्रह )
         रचयिता ---डा श्याम गुप्त 
                     ---   सुषमा गुप्ता 
प्रस्तुत है .....भाव अरपन ..सात ..गज़लें ..सुमन -२ ..काम करेंगे  ..

बड़े शौक ते आये यहाँ कछु काम करेंगे,
सेवा करेंगे देश की कछु नाम करेंगे |

गंदी बहुरि है राजनीति  या देश की ,
कछु साफ़ सुघरि करेंगे जब काम करेंगे |

काजर की कोठरी है जानत थे हमहू खूब,
इक लीक तौ लगैगी पर नाम करेंगे |
 
बेरिन  ते अपने हम तौ थे खूब हुशियार ,
जानौ न कबहूँ अपुने ही बदनाम करेंगे |

वो संग हूँ चले नहीं अरु खींच लये पाँव,
था भरोसौ कै साथ कदम ताल करेंगे |

सच की ही गैल चलत रहे हम तौ उमरि  भर,
बदलें  जो गैल अब , का नयौ काम करेंगे |

हर डारि पै या ब्रक्ष की उलूकन  के घर बसे,
बदलेंगे ठांव अब का नया धाम करेंगे |

बैठे हैं गिद्ध चील कौवा हर डारि पै,
कूकर हैं भासन देत, गधे गान करेंगे ||
 

रविवार, 19 मई 2013

ब्रज बांसुरी" की रचनाएँ ....भाव अरपन ...चार --------पद ..सुमन -१८ व २४ ...डा श्याम गुप्त ...



            ब्रज बांसुरी" की रचनाएँ .......डा श्याम गुप्त ...    
              

                     मेरे शीघ्र प्रकाश्य  ब्रजभाषा काव्य संग्रह ..." ब्रज बांसुरी " ...की ब्रजभाषा में रचनाएँ  गीत, ग़ज़ल, पद, दोहे, घनाक्षरी, सवैया, श्याम -सवैया, पंचक सवैया, छप्पय, कुण्डलियाँ, अगीत, नव गीत आदि  मेरे अन्य ब्लॉग .." हिन्दी हिन्दू हिंदुस्तान " ( http://hindihindoohindustaan.blogspot.com ) पर क्रमिक रूप में प्रकाशित की जायंगी ... .... 
        कृति--- ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा में विभिन्न काव्यविधाओं की रचनाओं का संग्रह )
         रचयिता ---डा श्याम गुप्त 
                     ---   सुषमा गुप्ता 




प्रस्तुत है ---भाव अरपन  ...चार --------पद ..सुमन -१८   व २४  ..-----------------
               
नारी सब जग तेरी छाया |
सारे जग कौ प्रेम औ ममता, तेरे मन ही समाया |
तेरी प्रीति की रीति ही तौ है, जग की छाया माया |
ममता  रूपी  मैया के पग, सारा   जगत सुहाया |
प्रीति की सुन्दर नीति बनी तू, जग में प्यार बसाया |
भगिनी पुत्री विविध रूप धरि , जग-संसार रचाया |
आदिशक्ति, शारदा औ गौरी, लक्ष्मी रूप सजाया |
राधा बन कान्हा को नचायेसारा जगत नचाया |
श्याम, कामिनी सखी प्रिया, प्रेयसि बन मन भरमाया |


             सुअना नाम रटे का होई |
नाम धाम रटि  रटि कै सुअना, पार भया ना कोई |
धन की बतियाँ कहत सुने ते, कौन धनी होइ जावै|
पानी पानी कहत रहै नित, प्यास कहाँ बुझि पावै |
का घड़ियाल बजाए होई , का परसाद चढ़ाए |
पुहुप पात भेंटे का होई, जो सत करम न भाए |
बिनु समुझे बूझे जाने बिनु, नाम रटे क्या होता |
माया ज्यों ही सम्मुख आवे, वही रटन्ता  तोता |
राम रूप गुन धारै-परसै, सोइ गुन करम करै |
श्याम', श्याम  महिमा  चित धारे, सो भवसिन्धु तरै ||


बुधवार, 15 मई 2013

ब्रज बांसुरी" की रचनाएँ.....भाव अरपन चार -पद ..सुमन -५ व १२ ...डा श्याम गुप्त ......

ब्रज बांसुरी" की रचनाएँ .......डा श्याम गुप्त ...          
              


                     मेरे शीघ्र प्रकाश्य  ब्रजभाषा काव्य संग्रह ..." ब्रज बांसुरी " ...की ब्रजभाषा में रचनाएँ  गीत, ग़ज़ल, पद, दोहे, घनाक्षरी, सवैया, श्याम -सवैया, पंचक सवैया, छप्पय, कुण्डलियाँ, अगीत, नव गीत आदि  मेरे अन्य ब्लॉग .." हिन्दी हिन्दू हिंदुस्तान " ( http://hindihindoohindustaan.blogspot.com ) पर क्रमिक रूप में प्रकाशित की जायंगी ... .... 
        कृति--- ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा में विभिन्न काव्यविधाओं की रचनाओं का संग्रह )
         रचयिता ---डा श्याम गुप्त 
                     ---  श्रीमती सुषमा गुप्ता 

प्रस्तुत है ---भाव अरपन  ...चार ,पद ..सुमन -५  व १२ ..

हे युग परिवर्तन प्राण |
तुमहिं कान्ह, तुम कृष्न-मुरारी, तुम राधा-घनश्याम |
तुमहिं राम हौ खलु-दल भंजक, लिए धनुस औ बान |
परसु रूप धरि  त्रस्त जनन कों, दीन्हों मन्त्र महान  |
भ्रस्ट -पतित, सत्ता-विरोध स्वर, नवयुग कौ निर्मान|
तुलसी सूर काव्य बन राखौ, संस्कृति कौ सनमान |
गौतम गांधी बने श्याम' जुग परिवर्तन दिनमान ||


सखी री! चलिहैं मथुरा धाम |
रास की लीला गूंजे नित नित, वृन्दावन के धाम |
वन वन ढूंढ़ें श्याम कौं सखि री, वा गोकुल के धाम |
राधाजी पग धूरि  परी जहँ, बरसाने सुखधाम |
झूमि झूमि चलि नचिहैं गैहैं, धूलि उडै अभिराम |
श्याम' कृपा होय राधारानी, दरसन दें घनश्याम ||
 




शनिवार, 11 मई 2013

ब्रज बांसुरी" की रचनाएँ ...भाव अरपन-- चार ---पद - सुमन १.-प्रेमगली की राह .... ....डा श्याम गुप्त ...

  ब्रज बांसुरी" की रचनाएँ .......डा श्याम गुप्त ...                         


                     मेरे शीघ्र प्रकाश्य  ब्रजभाषा काव्य संग्रह ..." ब्रज बांसुरी " ...की ब्रजभाषा में रचनाएँ  गीत, ग़ज़ल, पद, दोहे, घनाक्षरी, सवैया, श्याम -सवैया, पंचक सवैया, छप्पय, कुण्डलियाँ, अगीत, नव गीत आदि  मेरे अन्य ब्लॉग .." हिन्दी हिन्दू हिंदुस्तान " ( http://hindihindoohindustaan.blogspot.com ) पर क्रमिक रूप में प्रकाशित की जायंगी ... .... 
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         रचयिता ---डा श्याम गुप्त 
                     ---  श्रीमती सुषमा गुप्ता 

प्रस्तुत है ---भाव अरपन  ...चार ,,पद ..सुमन -१. प्रेम गली की राह ..

चलौ रे मन प्रेम गली की राह ,
प्रीति की पावन गली सुहानी वट सी शीतल छाँह |
प्रेम पसीजे तन मन भीजै, मन में भरै उछाह |
जितनौ गहरे पथिक चलौ रे आनंद मिलै अपार |
प्रभु की प्रीति मिले जेहि मग में सोई साँची राह |
प्रेम की  संकरी गली चले जो तकै न दूजी राह |
श्याम' जो प्रभु की प्रीति बसे मन दूजी रहै न चाह ||