ब्रज
बांसुरी" की रचनाएँ .......डा श्याम गुप्त ...
मेरे शीघ्र प्रकाश्य ब्रजभाषा
काव्य संग्रह ..."
ब्रज बांसुरी " ...की ब्रजभाषा में रचनाएँ
गीत,
ग़ज़ल,
पद,
दोहे,
घनाक्षरी,
सवैया,
श्याम -सवैया, पंचक सवैया, छप्पय, कुण्डलियाँ, अगीत, नव गीत आदि मेरे
अन्य ब्लॉग .." हिन्दी हिन्दू हिंदुस्तान " ( http://hindihindoohindustaan.blogspot.com ) पर क्रमिक रूप में
प्रकाशित की जायंगी ... ....
कृति--- ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा में विभिन्न काव्यविधाओं की रचनाओं का
संग्रह )
रचयिता ---डा श्याम गुप्त
--- सुषमा गुप्ता
प्रस्तुत है ---भाव अरपन ...चार --------पद ..सुमन -१८ व २४ ..-----------------
नारी सब जग तेरी छाया |
सारे जग कौ प्रेम औ ममता, तेरे मन ही समाया |
तेरी प्रीति की रीति ही तौ है, जग की छाया माया |
ममता रूपी मैया के पग, सारा जगत सुहाया |
प्रीति की सुन्दर नीति बनी तू, जग में प्यार बसाया |
भगिनी पुत्री विविध रूप धरि , जग-संसार रचाया |
आदिशक्ति, शारदा औ गौरी, लक्ष्मी रूप सजाया |
राधा बन कान्हा को नचाये, सारा जगत नचाया |
श्याम, कामिनी सखी प्रिया, प्रेयसि बन मन भरमाया |
सुअना नाम
रटे का होई |
नाम धाम रटि
रटि कै
सुअना, पार भया ना कोई |
धन की बतियाँ कहत सुने ते, कौन धनी होइ जावै|
पानी पानी कहत रहै नित, प्यास कहाँ बुझि पावै |
का घड़ियाल बजाए होई , का परसाद चढ़ाए |
पुहुप पात भेंटे का होई, जो सत करम न भाए |
बिनु समुझे बूझे जाने बिनु, नाम रटे क्या होता |
माया ज्यों ही सम्मुख आवे, वही रटन्ता तोता |
राम रूप गुन धारै-परसै, सोइ गुन करम करै |
श्याम', श्याम महिमा चित धारे, सो भवसिन्धु तरै ||
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें