रविवार, 19 मई 2013

ब्रज बांसुरी" की रचनाएँ ....भाव अरपन ...चार --------पद ..सुमन -१८ व २४ ...डा श्याम गुप्त ...



            ब्रज बांसुरी" की रचनाएँ .......डा श्याम गुप्त ...    
              

                     मेरे शीघ्र प्रकाश्य  ब्रजभाषा काव्य संग्रह ..." ब्रज बांसुरी " ...की ब्रजभाषा में रचनाएँ  गीत, ग़ज़ल, पद, दोहे, घनाक्षरी, सवैया, श्याम -सवैया, पंचक सवैया, छप्पय, कुण्डलियाँ, अगीत, नव गीत आदि  मेरे अन्य ब्लॉग .." हिन्दी हिन्दू हिंदुस्तान " ( http://hindihindoohindustaan.blogspot.com ) पर क्रमिक रूप में प्रकाशित की जायंगी ... .... 
        कृति--- ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा में विभिन्न काव्यविधाओं की रचनाओं का संग्रह )
         रचयिता ---डा श्याम गुप्त 
                     ---   सुषमा गुप्ता 




प्रस्तुत है ---भाव अरपन  ...चार --------पद ..सुमन -१८   व २४  ..-----------------
               
नारी सब जग तेरी छाया |
सारे जग कौ प्रेम औ ममता, तेरे मन ही समाया |
तेरी प्रीति की रीति ही तौ है, जग की छाया माया |
ममता  रूपी  मैया के पग, सारा   जगत सुहाया |
प्रीति की सुन्दर नीति बनी तू, जग में प्यार बसाया |
भगिनी पुत्री विविध रूप धरि , जग-संसार रचाया |
आदिशक्ति, शारदा औ गौरी, लक्ष्मी रूप सजाया |
राधा बन कान्हा को नचायेसारा जगत नचाया |
श्याम, कामिनी सखी प्रिया, प्रेयसि बन मन भरमाया |


             सुअना नाम रटे का होई |
नाम धाम रटि  रटि कै सुअना, पार भया ना कोई |
धन की बतियाँ कहत सुने ते, कौन धनी होइ जावै|
पानी पानी कहत रहै नित, प्यास कहाँ बुझि पावै |
का घड़ियाल बजाए होई , का परसाद चढ़ाए |
पुहुप पात भेंटे का होई, जो सत करम न भाए |
बिनु समुझे बूझे जाने बिनु, नाम रटे क्या होता |
माया ज्यों ही सम्मुख आवे, वही रटन्ता  तोता |
राम रूप गुन धारै-परसै, सोइ गुन करम करै |
श्याम', श्याम  महिमा  चित धारे, सो भवसिन्धु तरै ||


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