बुधवार, 15 मई 2013

ब्रज बांसुरी" की रचनाएँ.....भाव अरपन चार -पद ..सुमन -५ व १२ ...डा श्याम गुप्त ......

ब्रज बांसुरी" की रचनाएँ .......डा श्याम गुप्त ...          
              


                     मेरे शीघ्र प्रकाश्य  ब्रजभाषा काव्य संग्रह ..." ब्रज बांसुरी " ...की ब्रजभाषा में रचनाएँ  गीत, ग़ज़ल, पद, दोहे, घनाक्षरी, सवैया, श्याम -सवैया, पंचक सवैया, छप्पय, कुण्डलियाँ, अगीत, नव गीत आदि  मेरे अन्य ब्लॉग .." हिन्दी हिन्दू हिंदुस्तान " ( http://hindihindoohindustaan.blogspot.com ) पर क्रमिक रूप में प्रकाशित की जायंगी ... .... 
        कृति--- ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा में विभिन्न काव्यविधाओं की रचनाओं का संग्रह )
         रचयिता ---डा श्याम गुप्त 
                     ---  श्रीमती सुषमा गुप्ता 

प्रस्तुत है ---भाव अरपन  ...चार ,पद ..सुमन -५  व १२ ..

हे युग परिवर्तन प्राण |
तुमहिं कान्ह, तुम कृष्न-मुरारी, तुम राधा-घनश्याम |
तुमहिं राम हौ खलु-दल भंजक, लिए धनुस औ बान |
परसु रूप धरि  त्रस्त जनन कों, दीन्हों मन्त्र महान  |
भ्रस्ट -पतित, सत्ता-विरोध स्वर, नवयुग कौ निर्मान|
तुलसी सूर काव्य बन राखौ, संस्कृति कौ सनमान |
गौतम गांधी बने श्याम' जुग परिवर्तन दिनमान ||


सखी री! चलिहैं मथुरा धाम |
रास की लीला गूंजे नित नित, वृन्दावन के धाम |
वन वन ढूंढ़ें श्याम कौं सखि री, वा गोकुल के धाम |
राधाजी पग धूरि  परी जहँ, बरसाने सुखधाम |
झूमि झूमि चलि नचिहैं गैहैं, धूलि उडै अभिराम |
श्याम' कृपा होय राधारानी, दरसन दें घनश्याम ||
 




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